गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

हिमाचल यात्रा : तीसरा दिन , कांगड़ा से ज्वाला जी मंदिर

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !!

काँगड़ा माता को नगरकोट वाली माता भी कहते हैं और ब्रजेश्वरी देवी भी ! ब्रजेश्वरी का नाम मुझे कांगड़ा में ही पता चला !  ब्रजेश्वरी मंदिर , ऐसा कहा जाता है कि सती के जले हुए स्तनों पर बनाया गया है ! ये मंदिर कभी अपने वैभव के लिए जाना जाता था किन्तु इस पर लूटेरों की बुरी नजर क्या पड़ी , इसका वैभव जाता रहा ! सन 1009 में गज़नी ने इसे लूटा और इसे खँडहर बना कर यहां एक मस्जिद बना दी और अपनी सेना की एक टुकड़ी को यहां छोड़ दिया। लगभग 35 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद स्थानीय राजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया और देवी की एक मूर्ति स्थापित की ! इस मंदिर को फिर से सोने , चांदी और हीरों से सुसज्जित कर दिया गया लेकिन फिर से सन 1360 में फ़िरोज़ तुगलक ने इसे लूट लिया।  बाद में अकबर अपने मंत्री टोडरमल के साथ यहां पहुंचा और उसने इसका गौरव और वैभव वापस लाने की कोशिश करी किन्तु फिर से 1905 में आये भयंकर भूकम्प में ये जमींदोज़ हो गया ! लेकिन धन्यवाद देना चाहिए उस समिति को जिसने उसी वर्ष इसका पुनर्द्धार करवाया !

कांगड़ा माता के दर्शन करके जब होटल लौटे तो बस बिस्तर पकड़ने की देर लगी और 10 मिनट भी नहीं लगे होंगे नींद आने में ! अगले दिन सुबह सुबह कांगड़ा से करीब 35 किलोमीटर दूर ज्वाला जी जाने का कार्यक्रम पहले से तय था ! अगली सुबह 3 अक्टूबर था ! आठ बजे हम बस स्टैंड पर थे और मुश्किल से 10 मिनट में बस आ गयी ! ज्यादा सवारियां नहीं थी ! हिमाचल की सरकारी या प्राइवेट बसें इस मामले में अच्छी हैं कि ज्यादा देर रूकती नहीं हैं कहीं और न ज्यादा भीड़ होती है उनमें ! हमारे यहां गाज़ियाबाद से नॉएडा तक आने वाली प्राइवेट बस तो आधा आधा घंटा रुकी रहती है विजय नगर पर ! जब तक उसकी बस भर नही जायेगी वो एक कदम भी नहीं सरकेगा !


ज्वालाजी मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर भी कहते हैं ! ज्वालाजी मंदिर को भारत के 51 शक्तिपीठ में गिना जाता है ! लगभग एक टीले पर बने इस मंदिर की देखभाल का जिम्मा बाबा गोरखनाथ के अनुयायियों के जिम्मे है ! कहा जाता है की इसके ऊपर की चोटी को अकबर ने और शोभायमान कराया था ! इसमें एक पवित्र ज्वाला सदैव जलती रहती है जो माँ के प्रत्यक्ष होने का प्रमाण देती है ! ऐसा कहा जाता है कि माँ दुर्गा के परम भक्त कांगड़ा के राजा भूमि चन्द कटोच को एक सपना आया , उस सपने को उन्होंने मंत्रियों को बताया तो उनके बताये गए विवरण के अनुसार उस स्थान की खोज हुई और ये जगह मिल गयी , जहां लगातार ज्वाला प्रज्वलित होती है ! ये ही ज्वाला से इस मंदिर का नाम ज्वाला जी या ज्वालामुखी हुआ ! इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि प्राकृतिक रूप से निकलती ज्वाला की ही पूजा होती है ! एक आयताकार कुण्ड सा बना है जिसमें 2-3 आदमी खड़े रहते हैं ! अगर मैं सही देख पाया तो मुझे लगता है ये ज्वाला दो जगह से निकलती है ? एक जगह से थोड़ा ज्यादा और एक से कम !


हम करीब साढ़े नौ बजे ज्वालाजी पहुंचे होंगे ! बस स्टैंड के बिलकुल सामने से मंदिर के लिए रास्ता बना हुआ है ! चौड़ी रोड और रोड के दोनों तरफ प्रसाद , खिलौनों और महिलाओं के श्रृंगार के सामान से सजी दुकानें ! हाँ पूरे रास्ते पर फाइबर की छत पड़ी हुई है जिससे धूप से बचा जा सकता है ! एकदम लम्बी लाइन लगी हुई थी , कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने यहां भी अपनी जान पहिचान निकालने की कोशिश करी और शायद उनकी कोशिश सफल भी हुई थी , वो यानी वो चार लोग थे , माँ , बाप और दो बेटियां ! बेटियां करीब 18-19 साली की होंगी और बड़ी फैशनेबल भी थीं ! वो सब हमारे साथ में दूसरी लाइन में चल रहे थे लेकिन थोड़ी देर के बाद ही वो लाइन में से निकल गए और फिर करीब 1 घंटे के बाद उनके दर्शन हुए ! उनके माथे पर तिलक लगा था , इसका मतलब उन्होंने दर्शन कर लिए थे , इसीलिए मैंने कहा कि उनकी "एप्रोच " काम कर गयी और हम अभी भी लाइन में ही लगे रहे ! व्यवस्था अच्छी है लेकिन कई सारे चक्कर काटने पड़ते हैं मंदिर तक पहुँचने के लिए ! और फिर हम जैसे ही मंदिर के मुख्य द्वार से 15 मिनट की दूरी पर होंगे कि दरवाजे आरती के लिए , बताया गया कि अब साढ़े बारह बजे द्वार खुलेंगे और उस वक्त बजे थे साढ़े ग्यारह ! यानी अब एक घंटा यहीं लाइन में खड़े रहो या जगह मिल जाए तो घुटने मोड़ के बैठ भी सकते हो ! और जब नंबर आया तो पांच मिनट भी नही रुकने दिया मंदिर के अंदर ! मैंने हाथ में चालू हालत में कैमरा ले रखा था लेकिन जैसे ही प्रज्वलित ज्वाला की फोटो खींची पुजारी ने देख लिया और मेरा हाथ मोड़ दिया ऊपर की तरफ कि फोटो मत खींच ! नही ले पाया बढ़िया फोटो ! आखिर ज्वाला जी के दर्शन करके अकबर द्वारा चढ़ाया गया छत्र देखा ! वहीँ हवन के लिए एक निर्धारित स्थान भी है !


मंदिर प्रांगण में ही एक मंडप भी है जिसमें पीतल का एक बहुत बड़ा घंटा लगा ​था कभी , अब इसे उतारकर रख दिया गया है  , इस घंटे को नेपाल के राजा ने लगवाया था ! किस राजा ने लगवाया , ये मुझे नहीं मालुम , क्यूंकि वहां इस तरह का कुछ भी नही लिखा हुआ ! महाराजा रंजीत सिंह जब 1815 में इस मंदिर में आये तो उन्होंने इसके गुम्बद (डोम ) को सोने से बनवाया ! इसी मंदिर के ऊपर जाने पर एक लगभग 5 -6 फुट गहरा एक खड्ड सा है, इसकी तलहटी में भी एक छोटा सा गड्ढा है उसमें लगातार पानी उबलता रहता है ! क्यों है , कैसे है , मैं नहीं जानता ! ऐसा ही एक लम्बा चौड़ा गर्म पानी का कुण्ड बद्रीनाथ पर भी है !

पोस्ट ज्यादा बड़ी हो जायेगी , अब विराम देता हूँ ! 

आइये​ फोटो देखते हैं :


चलती -फिरती फूलों की दूकान
ऐसे दो तीन तोरण द्वार हैं ज्वालाजी पर


मंडप



​ज्वालाजी मंदिर



​ज्वालाजी मंदिर


​ज्वालाजी मुख्य मंदिर ​, अति की भीड़ थी उस दिन

​ज्वालाजी मंदिर
​​ज्वालाजी मंदिर

मुख्य मंदिर के बराबर में ही एक और मंदिर है जिसमें एक प्रतिमा लगी है और इसमें ही अकबर का चढ़ाया हुआ छात्र भी है ! ये वास्तव में एक हाल है जहां श्रद्धालु आराम फरमाते हैं कुछ देर



​ ये ढोल आरती के समय एक आध मिनट के लिए बजता है फिर बंद हो जाता है ! विशेषता ये है कि मैकेनिकली बजता है ! एक मोटर लगा रखी है इसमें

मंडप में ज्वाला माँ का विश्राम स्थल और शयन सैय्या



मंडप में बहुत सी मूर्तियां हैं , उनमें से ही एक 


​पास में एक हवन कुण्ड भी है

​नेपाल के राजा द्वारा चढ़ाया गया सवा कुंतल का घंटा




यात्रा जारी है

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

हिमाचल यात्रा दूसरा दिन : पठानकोट से कांगड़ा

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें !!


ट्रेन क्यूंकि अपने निर्धारित समय पर ही दिल्ली जंक्शन ( पुरानी दिल्ली ) से निकल गयी थी तो लेट होने के चांस बहुत कम हो गए थे और अगर आप इस ट्रेन का रिकॉर्ड चेक करें तो पाएंगे कि ये ट्रैन ज्यादातर अपने समयानुसार ही चलती है ! मुझे इसका कारण समझ में आता है और शायद वो ये है कि इस रूट पर गाड़ियां बहुत कम हैं ! बहादुर गढ़ , रोहतक , जींद , लुधियाना , जालंधर और मुकेरियां होते हुए सुबह-सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर आपको पठानकोट फैंक देती है । धौलाधार , जिसको हमने शुरू से ही धुँआधार एक्सप्रेस नाम दे रखा था पठानकोट पर एक नंबर प्लेटफार्म पर उतारती है और उसी प्लेटफार्म पर शौचालय और नहाने की व्यवस्था भी है पांच रुपये में ! लेकिन मुश्किल ये आई कि ज्यादातर सवारी जो दिल्ली या लुधियाना से गयी होंगी वो सब उसमें घुसी पड़ी थीं इसलिए भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी कि नहाने का विचार छोड़ ही दिया और दूसरी बात ये भी है कि कांगड़ा जाने वाली ट्रेन 10 बजे निकलती है ,प्लेटफार्म नंबर 4 से ! अगर नहाने का कार्यक्रम करते तो निश्चित ही या तो ये ट्रेन निकल जाती या फिर जगह नहीं मिल पाती ! इसलिए नहाने का विचार छोड़कर कांगड़ा का टिकट लेने चला गया , वहां पता चला की ट्रेन कांगड़ा तक नहीं बल्कि कॉपर लहड़ तक ही चल रही है ! कॉपर लहड़ से आगे कहीं स्लीपर बदले जा रहे हैं या कुछ और काम चल रहा है ! कोपर लहड़ कांगड़ा से बिलकुल पहले का स्टेशन है । 25 , 25 रुपये के दो टिकट लेकर पुल पारकर प्लेटफार्म नंबर 4 पर पहुंचे , इसी प्लेटफार्म से कांगड़ा के लिए नैरो गेज की ट्रेन ( टॉय ट्रेन भी कहते हैं इन्हें ) जाती हैं ! उस दिन अष्टमी थी , हालाँकि मैं ज्यादा व्रत नहीं रखता लेकिन माता रानी के प्रथम और अंतिम व्रत कर लेता हूँ। भुक्खड़ भी नहीं हूँ लेकिन भूखा भी नही रहा जाता ! व्रत की वजह से बस चाय ही पी सकता था , तो 10 मिनट में 2 चाय पी गया खड़े खड़े ही ! इतनी देर में प्लेटफार्म पर ट्रेन लगने लगी तो एकदम पत्ता नहीं कहाँ से इतनी भीड़ आ गयी , मैंने भी रेंगती ट्रेन में अपना बैग एक सीट पर फैंक दिया और बीवी बच्चों के लिए एक पूरी सीट कब्जा ली ! अष्टमी और नवमी की वज़ह से शायद भीड़ और भी ज्यादा हो गयी थी !


भयंकर भीड़ ! लेकिन जैसे ही 10 बजे सुबह ट्रेन चलने लगी भीड़ का खौफ , हिमाचल की तरफ बढ़ती हरियाली और सुन्दर नजारों ने धीरे धीरे ख़त्म कर दिया ! जैसे जैसे स्टेशन आते रहे भीड़ और भी काम होती रही ! अलीगढ , दिल्ली के रूट से एकदम उल्टा जहां जितने उतरते हैं उससे चार गुना चढ़ जाते हैं ! करीब 2 बजकर 30 मिनट के आसपास हम कॉपरलहड़ पहुँच गए थे ! पठानकोट से ठीक 90 किलोमीटर दूर 232 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छोटा सा स्टेशन ! वहां से पैदल पैदल रोड तक आये और फिर रोड से 30-30 रुपये में टाटा सूमो से कांगड़ा ! 90 किलोमीटर के 25 रुपये और 7 किलोमीटर के 30 रूपये ! ये अंतर है ट्रेन और बस में !

पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक जाने वाली इस लाइन की लम्बाई लगभग 102 किलोमीटर है । सन 1929 में शुरू होने वाली इस नैरो गेज ( 762 मिलीमीटर स्पान ) लाइन को उत्तर रेलवे का फिरोज़पुर डिवीज़न ऑपरेट करता है। हिमाचल में इसके अलावा कालका -शिमला रूट पर भी टॉय ट्रैन चलती है जिसे UNESCO ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट में स्थान दिया हुआ है लेकिन पठानकोट -जोगिन्दर नगर लाइन उनकी लिस्ट में तो है लेकिन इसे अभी उन्होंने हेरिटेज के रूप में मान्यता नहीं दी है ! अच्छी बात ये है कि भारतीय रेलवे ने इस सेक्शन को ब्रॉड गेज ( 1676 मिलीमीटर स्पान ) में परिवर्तित करने की योजना बनाई हुई है और इसे जोगिन्दर नगर से आगे मंडी तक ले जाने का विचार है और आखिर में नए बनने वाले बिलासपुर -मंडी -लेह रेल मार्ग के माध्यम से लददाख तक पहुँचने का ख्वाब है ! ख्वाब अच्छा है , लेकिन पूरा कब होता है , इसका इंतज़ार करना पड़ेगा !


करीब साढ़े तीन बजे के आसपास हम काँगड़ा पहुँच गए थे , होटल लेने के लिए बहुत घूमना पड़ा और मिला भी तो बहुत महँगा ! 700 रुपये माग रहा था होटल वाला , कम करते करते 600 पर आकर तैयार हुआ ! कारण सिर्फ एक समझ आ रहा था भीड़ ! नवमी की भीड़ होटल से लेकर मंदिर तक बनी रही लेकिन दर्शन करके साड़ी थकान और निराशा आनंद में बदल गयी ! काँगड़ा देवी को हमारे यहां अलीगढ में कोई भी कांगड़ा माई नहीं कहता , सब नगरकोट वाली मैया ही कहते हैं ! उस दिन यानी 2 अक्टूबर को माँ के दर्शन कर कुछ फलाहार किया और वापस होटल ! अगले दिन की बात अगली क़िस्त में :


कोपर लहड़ स्टेशन से पैदल पैदल रोड तक आना पड़ा
अपने मूड में पारी , मेरा छोटा बेटा
अगर लाइन ठीक होती तो हम यहां उतरते
कांगड़ा मंदिर
कांगड़ा मंदिर
​आरती के समय ये वाद्य  यंत्र बड़ी बेकार सी  आवाज़ करता है
कांगड़ा मंदिर
कांगड़ा मंदिर!!
ये फोटो नेट से ली गयी है ! फोटो ग्राफर का नाम नही है !!
कांगड़ा मंदिर !! ये फोटो नेट से ली गयी है ! फोटो ग्राफर का नाम अवनीश मौर्या है !!
कांगड़ा मंदिर



कांगड़ा मंदिर में मुख्य दरवाजे के सामने शेर की प्रतिमूर्ति


रात के समय में रौशनी से नहाया कांगड़ा मंदिर
यात्रा आगे जारी है : 

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

हिमाचल की पहली यात्रा


हिमाचल यात्रा 
पहला दिन : 1-2 अक्टूबर 2014


हिमाचल का एक एक गाँव , एक एक शहर या ये कहूँ कि हर जर्रा इतना खूबसूरत है कि मन करता है वहीँ पड़े रहो ! लेकिन आदमी की बड़ी जरुरत उसके पेट की भूख होती है और उसे शांत करना प्राथमिक कार्य होता है और विवाहित और बच्चे वाले आदमी के लिए तो और भी दस तरह की जिम्मेदारियां हो जाती हैं ! लेकिन इसके साथ ही बच्चों से मिलने वाली ख़ुशी भी आपको हमेशा प्रसन्नचित बनाये रखती है ! ये पंक्तियाँ असल में इसलिए लिख रहा हूँ क्यूँकि मैंने अगस्त में अकेले जाने के लिए जैसे ही रिजर्वेशन कराया तो बच्चों ने जिद पकड़ ली कि हम भी जाएंगे , अब इस चक्कर में पहले का रिजर्वेशन कैंसिल कराना पड़ा और जब दोबारा कराने बैठा तो छुट्टियों का हिसाब किताब गड़बड़ा रहा था इसलिए सब देखभाल के अक्टूबर के पहले सप्ताह में जाने का रिजर्वेशन कराने का सोच लिया ! 2 अक्टूबर से लेकर 6 अक्टूबर तक की छुट्टियां मिल रही थीं तो जाने के लिए 1 अक्टूबर की रात को निकला जा सकता था और जब गाज़ियाबाद से निकलकर पठानकोट जाने वाली ट्रेन में जगह देखी तो निराशा हाथ लगी ! कहीं कोई संभावना नजर नहीं आ रही थी टिकेट मिलने की ! सभी ट्रेनों में भरी वेटिंग ! दिमाग ने फिर सही काम किया और पुरानी दिल्ली से रात में 10 बजकर 45 मिनट पर चलने वाली धौलाधार एक्सप्रेस ( 14035 ) में 1 अक्टूबर को 40 और 41 वेटिंग मिल गयी ! उम्मीद थी कन्फर्म हो जायेगी और लौटने का पक्का टिकट मिल गया ! भीड़ का अंदाज़ा था क्योंकि इतनी लम्बी छुट्टियां मिल रही थीं तो सबको ही जाना होगा , सबने ही प्लान बना लिया होगा !

1 अक्टूबर आते आते हमारा टिकट कन्फर्म हो चूका था , होना ही था ! शायद 200 , 300 वेटिंग भी कन्फर्म हो गयी होगी ! इसका एकमात्र कारण रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ! उन्होंने 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के दिन जो "स्वच्छ भारत अभियान " प्रारम्भ किया उसके चक्कर में सरकारी कर्मचारियों को ऑफिस जाना पड़ा और उस चक्कर में उनके प्लान बेकार हो गए होंगे और उन्होंने धड़ाधड़ अपनी टिकेट कैंसिल करा डालीं होंगी ! और इसका फायदा हम जैसे वेटिंग में लगे लोगों को मिल गया ! धन्यवाद मोदी जी , देश को साफ़ सुथरा बनाने की पहल के लिए और टिकट कन्फर्म कराने के लिए ।

1 तारिख को कॉलेज से हाफ डे लेकर घर निकल लिया। ऐसे ट्रेन तो रात को 10 बजकर 45 मिनट पर थी लेकिन जब आपके साथ में बच्चे हों तो समय से ही स्टेशन पहुंचना बेहतर होता है और यही सोचकर पुरानी दिल्ली स्टेशन पर हम 8 बजे ही पहुँच गए। गाडी अपने निर्धारित समय पर चल पड़ी !

धौलाधार, हिमालय की दक्षिण हिस्से की रेंज है जो मैदानों से शुरू होकर कांगड़ा तक जाती है और फिर पीर पंजाल से जुड़ जाती है ! धौलाधार को लैसर हिमालय या आउटर हिमालय भी कहते हैं ! धौलाधार पहाड़ियों की ऊंचाई 3500 मीटर से लेकर 6000 मीटर तक जाती है ! इस रेंज की सबसे ऊँचे चोटी  कांगड़ा जिले में पड़ने वाली " हनुमान जी का टीबा " है जो 5639 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है , इसे वाइट माउंटेन भी कहते हैं ! धौलाधार रेंज में कई विश्व प्रसिद्ध चोटियाँ हैं जैसे धर्मशाला के नजदीक मुन ( 4610  मीटर ) , पवित्र मणिमहेश  ( 6638  मीटर )  तैलंग दर्रा के पास गौर्जुन्दा (4946 मीटर ) , तोराल (4686 मीटर ) और राइफल हॉर्न ( 4400 मीटर ) इनमें प्रमुख हैं ! आज इतना ही,  बाकी की यात्रा अगली पोस्ट में !

आइये फोटो देखते हैं :


ईद के लिए बकरे भी इधर उधर होते हैं




















टॉय ट्रेन की खिड़की से झाँकता मेरा बेटा पारी
सुन्दर हिमाचल
नैरो गेज लाइन


ये बाण गंगा दिखाई दे रही है


यात्रा आगे जारी है :