मंगलवार, 3 जनवरी 2017

Rajon Ki Baoli : Mehrauli

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दिल्ली ! ये दिल्ली है ! कितनी बार लुटी , लूटी गई लेकिन फिर से उठ खड़ी हुई , बार बार और हर बार ! जितनी बार खंडहर हुई उतनी ही बार कोई न कोई आया इसका भविष्य सुधारने को और वो दिल्ली जो आज है,  ऐसे ही किसी कजरू - पजरु ने नहीं बना दी ! लोगों का पसीना और खून बहा है इस दिल्ली को सलामत और जिंदादिल रखने में ! और जब भी मुझे मौका मिलता है , निकल जाता हूँ इसी दिल्ली की ख़ाक छानने को ! ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ता दिल्ली जाने को ! मैट्रो कार्ड जेब में पड़ा होता ही है और बस घर से कैमरा उठाना होता है ! जितनी बार दिल्ली जाता हूँ और जब लौटकर आता हूँ तो ये मुझसे पूछती है - अभी बहुत कुछ रहा गया है देखने को ! फिर कब आएगा ? और मैं भी इसे अपनी बूढी माँ की तरह दिलासा देकर वहां से चल देता हूँ , जल्दी ही आऊंगा ! फिर से ! छुट्टी मिलते ही !




दिल्ली ऐतिहासिक रूप से कुल सात शहरों से मिलकर बना एक शहर है ! ये सात शहर हैं :

1 . किला राय पिथौरा

2 . महरौली

3 . सीरी

4 . तुगलकाबाद

5 . फ़िरोज़ाबाद

6 . शेरगढ़ और

7 . शाहजहाँनाबाद

अब आप कह सकते हैं कि आठवाँ शहर "नई दिल्ली " भी इसी में शामिल हो गया है ! इनमें से कुछ देखे हैं , कुछ देखने बाकी हैं ! इनमें से किला राय पिथौरा के केवल कुछ अवशेष ही बाकी हैं ! हाँ , अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा कि इन सभी सात शहरों में से मुझे महरौली सबसे ज्यादा आकर्षित करता है ! महरौली का जैसे हर पत्थर , हर गली , हर दरवाज़ा अपने आप में एक इतिहास है और उसे खोलकर बैठें तो एक पूरा लंबा चौड़ा इतिहास खुलकर आ जाएगा ! यूँ महरौली पहुंचना कोई कठिन नहीं है लेकिन सुविधाजनक माध्यम देखें तो मैट्रो ज्यादा बेहतर है ! येल्लो लाइन के क़ुतुब मीनार स्टेशन से उतरकर , पैरों में जान है तो पैदल ही मार्च कर लो यहां तक पहुँचने के लिए या फिर 5 रुपल्ली देकर बस में बैठ जाओ ! ज्यादा पैसे खर्च करने हैं तो फिर ऑटो रिक्शा तो है ही ! आप कैसे भी पहुंचे , महरौली अपने राजाओं , सुल्तानों , जनरलों , योद्धाओं , संत महात्माओं की गाथाएं लेकर आपके स्वागत के लिए हमेशा तैयार दीखता है ! ये जगह पांडवों से भी सम्बंधित रही है ! तो थोड़ा सा इसका अपना इतिहास भी लिखना तो जरुरी हो ही जाता है ! है , न ?

सर्वप्रथम प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान ने लाल कोट की दीवारें खड़ी कर के राजा अनंगपाल की दिल्ली को एक व्यवस्थित शहर का रूप देना शुरू किया लेकिन सन 1192 ईसवी में तराइन के युद्ध में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर , कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना "वाइसराय " बनाकर दिल्ली भेजा ! मुहम्मद गोरी की 1206 ईसवी में मौत के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया और इस तरह मामलुक यानि गुलाम वंश की शुरुआत हुई ! इस युग में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बहुत से हिन्दू प्रतिष्ठानों को नष्ट कर डाला और अपने गुरुओं , धार्मिक व्यक्तियों के मक़बरे आदि बना डाले !

महरौली आर्किलॉजिकल पार्क ( Mehrauli Archaeological Park ) में आपको एक से एक पुराने मोनुमेंट्स देखने को मिल जाएंगे ! मतलब पूरे दिन का मामला बन जाता है ! क़ुतुब मीनार तो आपने देखा ही होगा ! मैं आज उसकी बात नहीं करूँगा , आप चाहें तो कुतुबमीनार की मेरी पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर लें ! आज कुछ अलग सा देखने चलते हैं !

गंधक की बावली :
आप समझो कि आप महरौली के बस स्टैंड पहुँच गए ! थोड़ा सा यानि 100 कदम पीछे लौटिए , आपको योगमाया मंदिर का बोर्ड दिखेगा , दर्शन कर आइयेगा ! मंदिर बहुत सुन्दर भले न हो लेकिन प्राचीन है और भगवान श्री कृष्णा की बहन को समर्पित है ! वापस लौटिए फिर से महरौली के बस स्टैंड पर ही , सामने आदम खान का मक़बरा है ! इसे देखिये , घूमिये और आदम खान के मकबरे के सामने ही अग्रवाल स्वीट्स के यहां बैठकर दो कचौड़ी खाइये ! भूख भी तो लग गई होगी आपको ! पानी पीजिये और इसी रास्ते पर आगे बढ़ते जाओ , उल्टे हाथ पर पोस्ट ऑफिस मिलेगा और सीधे हाथ पर महरौली थाना ! उल्टे हाथ की तरफ मुड़ जाइये , गलियों से निकलते हुए एक दरगाह मिलेगी , किसकी है ? याद नहीं ! शायद बख्तियार काकी की दरगाह है ! जैसे ही आप दरगाह पार करेंगे एक रोड आ जाती है और उसी रोड के दूसरी तरफ है गंधक की बावली ! नाम वैसे सही है लेकिन यहां की गन्दगी देखकर कहेंगे कि इसका नाम " गंद की बावली" होना चाहिए था ! गंधक की बावली गुलाम वंश के दौरान 13 वीं शताब्दी में बनवाई गयी थी , इसका और ज्यादा इतिहास मुझे नहीं मालुम !

राजों की बावली :
इसी रोड पर आगे चलते जाइये , एक जंगल सा मिलेगा ! अकेले हैं तो इसमें अंदर जाते हुए डर सा लगेगा लेकिन डर वाली कोई बात नहीं है ! रोड के किनारे जहां सबसे ज्यादा बदबू आये , वहीँ से एक रास्ता इस जंगल में जाता है ! बदबू इसलिए क्योंकि वहां "कूड़ा घर " है ! ये मेरे नहीं बल्कि मित्रवर अमित तिवारी जी के शब्द हैं जब मैंने उनसे रास्ता पूछा था फोन पर ! करीब 50 मीटर अंदर जाते ही रास्ता मिल जाता है जहां मार्किंग पिलर लगे हुए हैं ! फोटो खींचते हुए , जंगल में मंगल करते हुए राजों की बावली पहुँच जाते हैं ! सामने ही कब्रिस्तान है जहां न जाने कितने तुर्रम खां जमीन के नीचे दबे पड़े होंगे ! वो तुर्रम खां जिनकी एक घुड़की से कई लोगों की सांस अटक जाती होगी ! समय बड़ा बलवान होता है !!

राजों की बावली वास्तव में राजाओं की बावली नहीं है ! इसका मूल नाम राजों की बावली है ! राज मतलब राज मिस्री , जो घर -दीवार बनाते हैं ! तो अगर अंग्रेजी में कहें तो Its not a step well of kings but step well of Masons !! सिकंदर लोधी के शासन में दौलत खान द्वारा 1516 ईसवी में बनवाई गयी ये बावली तीन मंजिल की है और गंधक की बावली की तुलना में ज्यादा साफ़ सुथरी और व्यवस्थित है ! इसके बराबर में ही एक मस्जिद भी है ! हालाँकि लोग मस्जिद देखने नहीं बल्कि बावली देखने जाते हैं ! बावली की जो दीवारें हैं उन पर उर्दू / फ़ारसी में कुछ गुदा ( inscripted ) हुआ है ! शायद क़ुरआन की आयतें होंगी लेकिन उर्दू पढ़ -लिख लेने के बावजूद में "अल्लाह " के अलावा और कुछ नहीं पढ़ पाया !  इसके दोनों तरफ के कोने में सीढियां बनी हैं जहां से आप ऊपर जाकर बावली का विहंगम नजारा देख सकते हैं और सामने की तरफ नजर जायेगी तो महरौली के दूसरे मोनुमेंट्स भी दिखाई दे जाएंगे ! हाँ , अगर गर्मी में जाएँ तो पानी की बोतल जरूर साथ रखियेगा , पानी यहां आसपास कहीं नहीं मिलेगा ! वैसे भी जंगल ही तो है चरों तरफ !

इसके सामने ही एक कब्रिस्तान है ! जहां कुछ कब्र ठीक हालात में हैं तो कुछ एकदम से ख़त्म हो चुकी हैं ! अब ये जगह जुएबाजों का घर बन गई है ! एक कोई बड़ा सा गुम्बद है लेकिन किसका है , मुझे नहीं मालूम ! अब तक जितना भी रास्ता आपने तय किया है उसमें छोटी छोटी कई मुग़ल जमाने की गुमटियां मिल जाएंगी ! हाँ , और दिल्ली मुम्बई की कल्चर के "नमूने " तो मिलेंगे ही ! अब उनको इग्नोर करने की आदत सी हो गई है ! ज्यादा नहीं सोचता इस बारे में और न ज्यादा ध्याद देता हूँ ! इन दो बावलियों के अलावा दिल्ली में दो बावली और हैं , एक है कनॉट प्लेस में महाराजा उग्रसेन की बावली और दूसरी राजा अनंगपाल की बावली ! इसमें से उग्रसेन कीबावली देखि हुई है और राजा अनंगपाल की बावली देखनी बाकी है !  यहां से निकालने के बाद आप महरौली पार्क की तरफ बढ़ जाते हैं , जहां बहुत पुराने मोनुमेंट्स हैं , लेकिन वो अगली पोस्ट में !


आगे मिलते हैं जल्दी ही एक और पोस्ट लेकर :


गंधक की बावली या गंध की बावली ? Step well of Sulphur or Step Well of Ordure ??
गंधक की बावली या गंध की बावली  ?
ऐसे marking pillar आपको पूरे रस्ते मिलेंगे 
मुग़लकालीन दीवारों के अवशेष( Ruins of Walls of Mughal e
मुग़लकालीन दीवारों के अवशेष ( Ruins of Walls of Mughal Period )
Gumti of Mugal Period
राजों की बावली( Baoli of Masons )
राजों की बावली( Baoli of Masons )
राजों की बावली( Baoli of Masons )


राजों की बावली तीन मंजिल की बाओली है( Mason's Baoli is three story Baoli)





रंग अब भी जिन्दा हैं (  Colors are still alive )
रंग अब भी जिन्दा हैं (  Colors are still alive )
Top of the tomb
मेरे यहां इसे "तिखाल " कहते हैं और आपके यहाँ ? Decorative Alcove




कब्रिस्तान ( Graveyaard opposite to Rajon Ki Bawali) 
 न जाने कितने " तुर्रम खां " यहां दफ़न होंगे ( Who Knows how many cleric or sergeant laid here )

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किसी की भी गर्दन ऊपर नहीं है ! इस फोटो का मतलब बस इतना ही बताना था कि मोबाइल फ़ोन हमारा कितना समय खा जाता है !

पता नहीं कब का है ,  क्या है ? लेकिन जंगल में अंदर मिला ! शायद ये भी कोई न कोई गुमटी होगी मुग़ल ज़माने की !

 मिलते हैं जल्दी ही ! तब तक राम राम !!






2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

love the way you wrote ! keep it up.🧡

stupid ने कहा…

Musafir ji,
dilli itne saal rehne ke baad bhi wo cize nahi dekha, aapke post ko pad kar ab jigyasa ho hi gayee hai ki ek baar isse dekha jaye.
dhanwaad apki parkhi nazro ko jo iss trh ke chizo ko ujagar karti hai. ghumne ka matlb to aaj kal bus selfy le ke social media pe dalna hi hota hai.