सोमवार, 28 अगस्त 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Budha Madhmaheshwar to Kachhni Dhaar ( Day 3)

इस ट्रैक को शुरू से पढ़ने और पूरा शेड्यूल ( Itinerary ) जानने के लिए इच्छुक हैं तो आप यहां क्लिक कर सकते हैं !!



इस ट्रैक को करने में जितना मुश्किल आई उससे ज्यादा मुश्किल लिखने में आ रही है ! क्योंकि आप मेरे मित्र हैं , मेरे शुभचिंतक हैं तो आपके साथ तो मैं अपने दुःख -सुख साझा कर ही सकता हूँ ! आप देखें तो मैंने पिछली पोस्ट 8 अगस्त को लिखी थी और ये आज लिख रहा हूँ मतलब 15-20 दिन का अंतराल ! कहीं गया नहीं था घूमने ! 14 तारीख़ को मेरे जन्मदाता , मेरे पिताजी इस दुनियां से दूसरी दुनियां में चले गए ! स्वर्गवासी हो गए ! बीमार चल रहे थे पिछले तीन महीने से और जब जून में इस ट्रैक पर गया था तब भी उनकी तबियत खराब चल रही थी ! लेकिन मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूँ कि जब पिताश्री अंतिम सांस ले रहे थे , मैं उनके पास था !! एक पुत्र के लिए ये संतोष की बात है !!


पिछली पोस्ट में आपसे मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी बताने का वायदा किया था ! आज अपना ये वायदा पूरा करना चाहूंगा :

मध्यमहेश्वर या मदमहेश्वर मंदिर , गढ़वाल के पंच केदारों में से एक केदार है जो भगवान शिव को समर्पित है ! यह मंदिर पंच केदार में चौथे नंबर पर आता है , पहले नंबर पर विश्वप्रसिद्ध केदार नाथ , दुसरे स्थान पर तुंगनाथ , तीसरे पर रुद्रनाथ और पांचवे नंबर पर कल्पेश्वर मंदिर आता है ! ये जो नंबर दिए गए हैं ये उनकी खूबसूरती या महत्व के अनुसार नहीं हैं बल्कि दर्शन के हिसाब से हैं ! मतलब पहले हमें केदारनाथ जी के दर्शन करने चाहिए , फिर तुंगनाथ जी और रुद्रनाथ जी के तब फिर मध्यमहेश्वर और अंत में कल्पेश्वर मंदिर के ! इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ये मंदिर 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जबकि हमारी अपनी device के अनुसार इस मंदिर की ऊंचाई 3150 मीटर मिली ! जो भी है , आप तय कर लीजिये ! मध्यमहेश्वर के मध्य यानि Middle शब्द का उपयोग ही इसके नाम में होता है , मतलब भगवान शिव के मध्य भाग नाभि (naval ) की पूजा की जाती है इस मंदिर में ! ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को पांडवों ने बनवाया था !

अच्छा , पूरी कहानी सुनना चाहते हैं शायद आप ? चलो जी , जैसी आपकी इच्छा ! तो आइये पूरी कहानी पढ़ते हैं , और हाँ आगे याद रखना इस कहानी को :)


महाभारत का युद्ध तो पता ही है आपको , पांडवों और उनके चचेरे भाई कौरवों के बीच हुआ था जिसमें पांडवों ने कौरवों और उनकी मदद करने वाले ब्राह्मणों को मार दिया था ! क्योंकि पांडवों ने अपने ही लोगों और ब्राह्मणों की हत्या की थी इसलिए उन्हें ब्रह्म हत्या का दोषी माना गया ! आज भले ही कोई ब्राह्मण हत्या कर दे कुछ नहीं होता लेकिन उस युग में ब्रह्म ह्त्या बहुत बड़ा पाप था , तो जी पांडवों ने ब्रह्म हत्या का पाप किया था , इसलिए उनका मोक्ष प्राप्ति का रास्ता मुश्किल था ! इसका तरीका निकाला भगवान श्री कृष्णा ने ! उन्होंने पांडवों को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा लेकिन भगवान शिव पांडवों से कुपित थे और वो पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे इसलिए भगवान शिव ने अपना रूप बदल लिया और नंदी ( Bull ) का शरीर धारण करके गढ़वाल निकल गए ! वैसे ही निकल गए होंगे जैसे आजकल नेता चुनाव के बाद दिखना बंद हो जाते हैं :) ! पांडवों को भगवान शिव का पता चला तो वो भी पीछा करते करते गढ़वाल के क्षेत्र में पहुँच गए और पांडवों ने आखिरकार गुप्तकाशी की पहाड़ियों में नंदी बने भगवान शिव को विचरण करते हुए पहिचान लिया ! भगवान शिव पांडवों से बचकर भागने लगे तो पांडवों ने उनकी पूंछ और टांग पकड़ने की कोशिश की , पांडवों ने मतलब भीम ने ! लेकिन भीम भी शिव को पकड़ नहीं पाया और भगवान शिव जमीन में अदृश्य हो गए और फिर अपने वास्तविक रूप में पांच हिस्सों में प्रकट हुए ! कुबड़ा मतलब Hump केदारनाथ जी में ! भुजाएं मतलब arms तुंगनाथ में ! मुख यानि Face रुद्रनाथ में , नाभि मतलब Naval और उदर मध्यमहेश्वर में और शिव की जटा मतलब Hair कल्पेश्वर में प्रकट हुए ! भगवान शिव के इन पाँचों स्थानों पर पांडवों ने मंदिर स्थापित किये , उनकी पूजा की और अंततः भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्त कर दिया और पांडवों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ ! तो जी ये कहानी है सभी पाँचों केदार की !! इसीलिए आपसे कहा कि इस कहानी को याद रखियेगा !!


अब तक हम बूढ़ा मद्महेश्वर पहुँच चुके हैं और आज काछनी धार तक पहुँचने का लक्ष्य तय किया हुआ है ! अब जो भी आगे की कहानी आएगी वो डायरी से आएगी :
 कल बारिश करीब 6 बजे रुक गई थी लेकिन रात में जबरदस्त बारिश आती रही ! शाम को बारिश के बाद मस्त नज़ारे देखने को मिले ! यहां से चौखम्भा चोटी दिखाई देती है ! बारिश रुकने के बाद बूढ़ा मद्महेश्वर के छोटे से मंदिर में अगरबत्ती जलाने पहुंचे ! यहां कभी -कभी ही अगरबत्ती जलती होगी , आज हम यहां हैं और ये हमारा सौभाग्य है कि हम यहां भगवान की पूजा कर पा रहे हैं ! एक छोटी सी घंटी भी रखी है , बजा दी ! भगवान खुश हो गए होंगे , या हो सकता है गुस्सा हो गए होंगे कि कौन आ गया नींद खराब करने :) बूढ़ा मद्महेश्वर करीब 3400 मीटर की ऊंचाई पर है लेकिन यहां आसपास गाय -भैंस चरते हुए दिख जाते हैं और हरे -हरे बुग्यालों में इनके चरने की फोटो बहुत मस्त लगती है !!

सुबह जगे तो मौसम साफ़ था , हालाँकि धूप नहीं थी ! एक पॉर्टर ने नीचे की तरफ मोनाल बर्ड दिखाई लेकिन जब मैं चुपके -चुपके पीछे की तरफ से फोटो लेने पहुंचा , पता नहीं उसे कैसे आहट आ गई और वो उड़ गई ! बहुत ही सुन्दर और प्यारी बर्ड होती है मोनाल , लेकिन मैं फोटो नहीं ले पाया उसकी ! अफ़सोस !

मैगी खाकर निकल लिए ! चाय का तो मैं कीड़ा हूँ , दो कप खैंची और करीब आठ बजे शुरू हो गए अपनी मंजिल काछनी धार की तरफ ! सबसे पहले मैं ही निकलता हूँ और सबसे आखिर में पहुँचता हूँ ! अमित भाई मुझे पहले निकाल देते हैं और आधा घंटे में ही वो मुझसे आगे निकल जाते हैं , फिर मैं उन्हें सिर्फ अगले destination पर ही मिल पाता हूँ :)


आज हमें बूढ़ा मध्यमहेश्वर से काछनी धार तक का सफर तय करना है करीब 9-10 किलोमीटर और 3400 मीटर की ऊंचाई से 4200 मीटर ऊंचाई तक ! मैं एक बात बता दूँ यहां , ज्यादातर लोग जो ये ट्रैक करते हैं वो काछनी धार आने के लिए मद्महेश्वर से शुरू करते हैं लेकिन हमने बूढ़ा मद्महेश्वर से शुरू किया ! मद्महेश्वर से रास्ता बना हुआ है लेकिन बूढ़ा मद्महेश्वर से या तो आप वापस नीचे आओ या फिर सामने वाली पहाड़ी पर मुश्किल चढ़ाई चढ़कर नया रास्ता बनाओ ! हमने दूसरा रास्ता चुना और बिना किसी रास्ते के पहाड़ के किनारे - किनारे घास पकड़कर करीब 2 -2.5 किलोमीटर चलते रहे ! इस बीच कई जगह ऐसा लगा कि पैर फिसला तो गए एकदम नीचे खाई में और फिर हमारी हड्डियां भी साबुत न मिलें , लेकिन भगवान की कृपा से ऐसा कुछ नहीं हुआ,  सकुशल मद्महेश्वर वाले रास्ते "रिठाना " नाम की जगह पर पहुँच गए ! यहां से भी दूर कहीं मद्महेश्वर मंदिर दिख रहा था !


करीब दो फुट चौड़े रास्ते को जैसे - तैसे वन विभाग वालों ने बनाया हुआ है ! जिस जगह हम ऊपर पहाड़ से आकर इस रास्ते पर आये उससे करीब 10 मीटर आगे ही हेलीकॉप्टर या शायद प्लेन के कुछ टुकड़े पड़े हैं जो आगे भी मिलते हैं ! कोई हेलीकॉप्टर या प्लेन यहां 1990 के आसपास crash हो गया था जिसके टुकड़े इधर -उधर फैले पड़े हैं ! कौन सा हेलीकॉप्टर था या प्लेन था , अगली पोस्ट में बताऊंगा !


रास्ता हालाँकि "मार्क्ड " है लेकिन बहुत कठिन चढ़ाई वाला है ! पैरों की जान निकल रही थी और अभी आधा रास्ता ही तय हुआ था , उस पर चारों तरफ से बादल घिर आये ! भयंकर तेज बारिश होने लगी और मैं अकेला ! इस वक्त मुझे बादल बहुत डरावने लग रहे थे ! मैं चिल्लाने लगा - कोई है क्या ? कोई है क्या ? मुझे डर ये भी था कि मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ या नहीं !! तीन चार बार चिल्लाने पर पीछे कहीं से आवाज़ आई -बारिश हो रही है रुक जाओ ! मैंने बस इतना ही पूछा -
ये काछनी का ही रास्ता है ? हाँ ! ओके ! इतना हौसला बहुत था मेरे लिए ! मैंने समझा वो कोई बकरी वाला है लेकिन बाद में पता चला  कि वो तो अपना ही पॉर्टर दिनेश था :) जो बारिश से बचकर एक गुफा में घुसा पड़ा था !

बारिश से चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा हो गया था ! श्रीकांत और बाकी पॉर्टर एक गुफा में घुसे हुए थे , मैं भी वहीँ पहुँच गया ! आखिर जब करीब 12 बजे बारिश रुकी तो फिर चलना शुरू कर दिया और अंततः तीन बजे के आसपास काछनी धार पहुँच गए ! हमें जहां टैण्ट लगाना था वो जगह खाली नहीं मिली ! वहां पनपतिया ट्रैक से लौट रहा कोई ग्रुप पहले से मौजूद था जिसमें 24 -25 लोग थे ! कोई विदेशी लोग पनपतिया जैसा कठिन ट्रैक करके आ रहे थे ! शायद अगले कुछ सालों में हम भी यहां जाने का प्रयास करें ! इन विदेशियों ने जितनी भी जगह थी , पूरी पर कब्ज़ा किया हुआ था ! आखिर हमें थोड़ा और नीचे करीब आधा किलोमीटर दूर अपने टैण्ट लगाने पड़े ! खाया -पिया ! सो गए !! :) 



कल रात अपना ठिकाना "बूढ़ा मध्यमहेश्वर " में था




अभी इन पहाड़ों की शिशु अवस्था है , दोपहर तक पूरे यौवन में आ जायेंगे
ये जो सामने धार देख रहे हैं ? इसी पर होकर जाना है



प्लेन जो 1990 में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था , उसके पार्ट्स इधर उधर फैले पड़े हैं

अनजान सी मंजिलों की तरफ......





प्रकृति अपने बच्चों का हमेशा स्वागत करती है और बदले में बस इतना चाहती है कि उसकी मर्यादा बनाये रखी जाए


वन विभाग ने ये काम तो बढ़िया किया है , पानी मिल जाता है











                                                                                                         
                                                                                                     ट्रैकिंग आगे जारी रहेगी :

5 टिप्‍पणियां:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

सबने पढ़ ली पोस्ट फिर भी कोई कमेंट नबो

Unknown ने कहा…

बेहद ही रोचक है सही में रास्ते भी खूबसूरत

Unknown ने कहा…

बुआ हम दोनों तो कर रहे है बढिया है

Yogi Saraswat ने कहा…

हाँ बुआ , देख लो ! हाहाहा , खैर बुआ -गूगल ने ही उड़ा दिए सभी पोस्ट के कमेंट !! 

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

बूढा मदमहेश्वर से बिना रास्ते पहाड़ पार करना वाकई बहुत डेंजरस होता है