शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

Bundi Palace & Chitrashala : Bundi

 इस श्रंखला शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं , इससे पहले मेनाल मंदिर , चौरासी खंभों की छतरी , सुखमहल और रानी जी की बावड़ी की पोस्ट लिखी जा चुकी हैं !!

चौरासी खम्भे की छतरी और सुखमहल घूमने के बाद मैं रानी जी की बावड़ी भी घूम चुका था और जो टिकट लिया था 75 रूपये का , उसकी वैलिडिटी ख़त्म हो गई थी ! अब नई जगह और नया रिचार्ज , मतलब नई टिकट। हम बूंदी फोर्ट जा रहे हैं जिसे गढ़ पैलेस भी बोलते हैं। असल में बूंदी में दो फोर्ट हैं , एक गढ़ पैलेस और एक तारागढ़ फोर्ट। हम सिर्फ गढ़ पैलेस ही जा पाए क्योंकि शाम का धुंधलका अपने आने की सूचना दे रहा था । लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि तारागढ़ नहीं गए तो हमने कुछ देखा ही नहीं ! गढ़ पैलेस फोर्ट और उसमें स्थित चित्रशाला अदभुत और अचंभित कर देने वाले दृश्य उपस्थित कर देने में सक्षम हैं। तारागढ़ फोर्ट , थोड़ा और इससे ऊपर बना है और गढ़ पैलेस से उसकी चारदीवारी दिखाई देती है। लेकिन आपको टिकट दोनों का अलग -अलग लेना होता है , गढ़ पैलेस का अलग और तारागढ़ फोर्ट का अलग। तारागढ़ फोर्ट के लिए रास्ता भी यहीं से ही है बस आपको गढ़ पैलेस में अंदर नहीं जाना , मुख्य रास्ते से ही ऊपर की ओर चलते जाइये , तारागढ़ पहुँच जाएंगे।

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Ticket Price : गढ़ पैलेस और तारागढ़ फोर्ट के लिए अलग -अलग टिकट लगता है जो 25 रूपये का है , विदेशियों के लिए यही टिकट 100 रूपये का हो जाता है। डिजिटल कैमरे का अलग से टिकट लगता है जो दोनों जगह के लिए 100 रूपये का है चाहे आप देशी हों या विदेशी।

हालाँकि मैंने कैमरे का टिकट नहीं लिया था , एक ने पकड़ा भी था कि आपने कैमरा का टिकट लिया है ? मैंने कहा नहीं -बोला आप लेकर आओ नहीं तो फोटो नहीं खींच सकते। मैंने कहा ठीक है -फोटो नहीं खींचता , लेकिन मैं रुकने वाला था क्या :)

Timings : गर्मी के दिनों में इसका खुलने का समय सुबह 8:00 बजे से शाम 7 :00 बजे तक और सर्दियों में सुबह 8:00 बजे से शाम 5 :00 बजे तक खुला रहता है , लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि आप अगर सुबह -सुबह जा रहे हैं तो 9 :00 बजे से पहले वहां मत जाइये। टिकट खिड़की पर कोई नहीं मिलेगा !!

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बूंदी फोर्ट जिसे गढ़ पैलेस भी कहते हैं , ये असल में प्राइवेट प्रॉपर्टी है जिस पर बूंदी के ही रंजीत सिंह जी का अधिकार है , भारत सरकार के अधीन कोई संस्था इसकी देखभाल नहीं करती। इसलिए संभव है कि आपको टिकट ज्यादा लग रहे हों । वैसे एक और बात बतानी जरुरी है कि बूंदी के ज्यादातर दर्शनीय स्थल , निजी संपत्ति ही ही हैं , वो चाहे सुख महल हो या फिर बूंदी का ये महल। तो इनकी देखभाल और सुरक्षा का जिम्मा भी इनके ही हाथ में होता है जो पर्यटकों की जेब से ही निकालना होता है। बूंदी शहर के मास्टर पीस , और इस शहर की पहिचान बूंदी फोर्ट को महाराव बलवंत सिंह ने सन 1607 से बनवाना शुरू किया था और समय -समय पर अलग -अलग महल बनकर 1631 ईस्वी में राव रतन सिंह ने इसे पूरा कराया । गढ़ पैलेस उसी पहाड़ी के एक कोने से में बना दिखाई देता है जिस पहाड़ी के ऊपरी हिस्से में तारागढ़ फोर्ट बना है और जब आप इस फोर्ट को ऊपर से देखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हवा में लटका दिया गया हो। मैं हालाँकि तारागढ़ फोर्ट नहीं गया लेकिन वहां जाने वाले लोग कहते हैं कि वो इतना अच्छा नहीं है जितना अच्छा गढ़ पैलेस है , लेकिन 25 रूपये में क्या जाता है , जब वहां गए हैं तो तारागढ़ भी देख ही आओ। अंग्रेजी लेखक रुडयार्ड किपलिंग जब यहां बूंदी में "सुखमहल " के एक कमरे में बैठकर अपनी किताब "किम " लिख रहे थे उस दौरान वो इस महल को देखने आये थे और इस महल को देखकर उन्होंने कहा था - "ऐसा महल बनाना किसी इंसान के बस की बात नहीं , ये ऐसा लगता है जैसा किसी चित्रकार ने कोई चित्रकारी की हो। ये बिल्कुल सपनों में दिखाई देने वाला महल लगता है। " ये संभव है कि किपलिंग ने तब के राजाओं को खुश करने के लिए कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर दी हो लेकिन सच में खूबसूरत महल है। किपलिंग की कुछ मजबूरी हो सकती है , अच्छा -अच्छा कहने की,  क्योंकि वो राजाओं के मेहमान थे और मुफ्त में राजाओं की रोटियां तोड़ रहे थे तो कुछ तो फ़र्ज़ निभाना ही होता है :)

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बूंदी फोर्ट कई छोटे -छोटे महलों का एक समूह है जिनमें रतन महल , छत्र महल , फूल महल और बादल महल अलग अलग बने हुए हैं लेकिन इन्हें इस तरह बनाया गया है कि बाहर से देखने पर पूरा एक किला नजर आता है। उम्मेद महल थोड़ा अलग बना है जिसे चित्रशाला कहा जाता है। ये दूसरे और महलों से ज्यादा सुन्दर और ज्यादा सजावट वाला लगता है। महल में बने झरोखे राजपूतों की शाही परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दीखते हैं , कुछ झरोखे तो ऐसे हैं जिनमें से आप पूरे बूंदी शहर का नजारा देख सकते हैं और इन झरोखों में से बूंदी के नीले घरों को देखना अच्छा लगता है। एक -दो फोटो दिखाऊंगा आपको उसी झरोखे में से लिए हुए।

जैसे ही आप मुख्य द्वार से एक चढ़ाई चढ़ते हुए , हांफते हुए अंदर आते हैं एक बड़ा सा गेट आपका स्वागत करता है जिसके दोनों तरफ हाथी की मूर्तियां लगी हैं , ये हाथी पोल है। हाथी पोल की सुंदरता देखकर ही इस फोर्ट की खूबसूरती और बड़े होने का एहसास होने लगता है। सामने एक लॉन है जो अच्छी तरह मेन्टेन किया हुआ है। यहां से अंदर जाते ही रतन महल आता है जिसमें बहुत सारे पिलर बने हुए हैं और यहीं एक शानदार सिंहासन सा कुछ है जो शायद राजा रतन सिंह के बैठने के लिए उपयोग में आता होगा और यहीं "दीवान ए आम " होगा ! राजा रतन सिंह ने मुग़ल शासक जहांगीर की कई युद्धों में मदद की थी जिसके लिए राजा रतन सिंह को जहांगीर के महल से विशेषज्ञ कारीगर भेजकर सम्मानित किया गया था जिन्होंने उस समय में बूंदी में कई सुन्दर हवेलियां , महल और स्कूल बनवाये थे। उस दौर में बूंदी को "दूसरा काशी " भी कहा जाने लगा था। रतन महल से आगे जाने पर "छत्र महल " है जिसमें रानियों का निवास स्थान हुआ करता था। बादल महल , कुछ छोटा लेकिन सुन्दर महल है जिसके आगे बरामदा बना हुआ है। कहते हैं बादल महल और फूल महल भी रानियों और राजकुमारियों का निवास स्थान हुआ करता था। आप वहां पांच दस मिनट खड़े रहिये और सोचिये कि उस वक्त यहां कितनी रौनक रहती होगी ? और आज ये सब वीरान सा है। पूरे किले में आपको कबूतर बहुत मिलेंगे।

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बाहर निकलकर चित्रशाला में चलते हैं जो वास्तव में उम्मेद महल है। यहाँ जाने के लिए पहले आपको हाथी पोल से वापस आना पड़ेगा फोर्ट के बाहर , फिर चित्रशाला के लिए जाना पड़ता है। चित्रशाला या उम्मेद पैलेस का निर्माण बूंदी के सबसे प्रसिद्ध राजा उम्मेद सिंह ने कराया था। उम्मेद सिंह ऐसे तो 42 साल की उम्र में राजपाठ छोड़कर संत बन गए थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन काल में उम्मेद पैलेस की दीवारों पर बूंदी के तब के इतिहास और राजा -रानियों के जीवन को चित्रकारी (Painting ) के रूप में अंकित करा दिया था। इस चित्रकारी के माध्यम से उम्मेद सिंह अपने बच्चों और अगली पीढ़ी को ये बताना चाहते थे कि महल के अंदर राजा और रानियों की जिंदगी कैसी होती है और जब राजा युद्ध में रहता है तब रानियां अपने महल में "हरम " में शराब के नशे में डूबी रहती हैं। ये तस्वीरें अलग -अलग रूप में रानियों को दिखाती हैं और अच्छी बात ये है कि आज भी इन्हें बहुत साफतौर पर देखा जा सकता है। यहां आपको देवी देवताओं की पेंटिंग्स भी बहुत सुन्दर रूप में देखने को मिलती हैं , मतलब अगर एक लाइन में कहूं तो जिंदगी का हर रूप , हर रंग इन चित्रों में देखने को मिल जाएगा , बस जरुरत है तो आपकी पारखी नजर की और ये भी कि आपकी नजरें क्या देखना चाहती हैं। 

Bundi Fort ( Garh Palace )


हाथी पोल

हाथी पोल की छत में भगवान् भास्कर की सुन्दर चित्रकारी


ये रतन महल है ! जहां सिंहासन पर बैठकर राजा रतन सिंह प्रजा की परेशानी सुनते होंगे

ये रतन महल है ! जहां सिंहासन पर बैठकर राजा रतन सिंह प्रजा की परेशानी सुनते होंगे
राजा रतन सिंह का सिंहासन( Throne of King Ratan Singh )


बादल महल ( Badal Mahal )



Bundi - The Blue City of Rajasthan


















समाप्त !! जल्दी ही मिलेंगे फिर एक नई जगह से , नई कहानी लेकर

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

Rani ji ki Baoli : Bundi

बूंदी की यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं !

सुखमहल के किनारे बैठकर जो ठण्डक का एहसास हुआ उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होगा लेकिन हर चीज का अपना एक वक़्त होता है तो हमें भी जाना ही था वहां से भी और चल दिए अपनी अगली मंजिल की तरफ। यहां पहुँच तो गया था लेकिन वापस जाने के लिए ऑटो नहीं मिल रही थी , बहुत देर तक इंतज़ार किया लेकिन कुछ नहीं मिला। बंदरों ने भी अपना पूरा रौद्र रूप दिखा रखा था। यहां एक छोटा सा गेट था जो शायद बूंदी शहर की सीमा को निर्धारित करता हुआ लग रहा था , मुझे भी लगा कि शायद इसके बाद गाँव शुरू होते होंगे। उसी गेट में से एक कोई भाईसाब स्कूटर से आये और मुझे लिफ्ट मिल गई , लेकिन लिफ्ट थोड़ी दूर के लिए ही मिल पाई। लेकिन वहां तक मिल गई जहां से बस स्टैंड तक के लिए आसानी से ऑटो / टैम्पो मिल जाएगा। अब अगली मंजिल "रानी जी की बावड़ी " ( The Queen’s Step-Well ) की तरफ चलते हैं जो बस स्टैंड के पास ही "मार्केट एरिया " में स्थित है।


राजस्थान का बूंदी शहर ऐसे ऊपर से देखने पर नीले रंग ( Blue Color ) का दीखता है तो आप जयपुर के पिंक सिटी की तरह बूंदी को आप "Blue City " भी कह सकते हैं लेकिन बूंदी को " City of Stepwalls ( बावड़ियों का शहर ) कहते हैं क्योंकि यहां एक दो नहीं पूरी 50 बावड़ी मौजूद हैं। रानी जी की बावड़ी को रानी नाथावती ने सन 1699 में बनवाया था । रानी नाथावती , बूंदी के राजा अनिरुद्ध सिंह की सबसे छोटी रानी हुआ करती थीं और शायद सबसे समझदार रानी भी , क्योंकि बूंदी में जो 50 बावली मौजूद हैं उनमें से 21 बावली तो रानी नाथावती ने ही बनवाई थीं जिससे उनके राज्य और उनके महल में रहने वाली प्रजा को पानी की परेशानी न हो। लेकिन हमें समय की कमी थी इसलिए केवल रानी जी की बावली ही देख पाए , कभी दोबारा मौका मिला तो और बावली भी जरूर देखना चाहूंगा बूंदी की। मुझे और भी बहुत सी जगहों पर बावली देखने का सुअवसर मिला है लेकिन इस बावली की बनावट और इसकी दीवारों पर बनी आकृतियां ( Carvings ) बहुत विशिष्ट हैं और आकर्षित करती हैं। बावड़ियों पर घुमक्कड़ बिरादरी के बीच बड़ी लम्बी और तगड़ी बहस चलती रहती है कि बावली बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या था ? मैं जितना जानता हूँ उसके मुताबिक बावली बनाने का मुख्य उद्देश्य वास्तव में जरुरत के लिए पानी को इकठ्ठा करना था लेकिन राजस्थान की बावली देखकर आप इसमें ये भी जोड़ सकते हैं कि ये पूजा -पाठ के स्थान भी हुआ करते थे। रानी जी की जो बावली है , उस की दीवारें पर देवी देवताओं की मूर्तियां लगाईं गई हैं जो इस बात को और भी मजबूत करती हैं।

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तीन मंजिल की और 46 मीटर गहरी "रानी जी की बावली " के प्रवेश दवार देखकर आपको इसकी भव्यता और शाही होने का अंदाजा होने लगता है , शानदार काम किया हुआ है पत्थरों पर। प्रवेश द्वार पर चार पिलर लगे हैं जिन पर हाथी की मूर्तियां विराजमान हैं। आजकल बावली की पहली मंजिल से एन्ट्री रोक दी गई है क्योंकि वहां से कबूतर बहुत आते होंगे। इसलिए जाली लगाकर रोक दिया गया है। लेकिन जो खूबसूरती और भव्यता इसकी बनावट , इसकी दीवारों और इसकी कलाकृतियों से झलकती है उसे यहां बिखरी पड़ी गन्दगी ढक देती है।

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सुबह 9 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक खुली रहने वाली "रानी जी की बावली " का प्रवेश टिकट का पैसा उसी में शामिल था जो टिकट हमने " चौरासी खम्भे की छतरी " पर खरीदा था , लेकिन बूंदी फोर्ट देखने के लिए आपको अलग से टिकट लेना पड़ेगा।

अब बाहर निकलने का समय है , आधा घण्टा बहुत है इस जगह को देखने के लिए। बाहर कलश यात्रा निकल रही है जिसमें महिलाएं सिर पर सजे हुए कलश लिए लाइन से चलती जा रही हैं। हमारे समाज में किसी पवित्र आयोजन से पहले कलश यात्रा निकाली जाती है। आगे -पीछे खूब सारे लड़के चल रहे हैं जिन्हने भगवा गमछा गले में डाल रखा है और हाथ में डण्डे हैं। फोटो लेना चाहता हूँ लेकिन महिलाओं की फोटों लेता हुआ देखकर कोई मुझे "ठोक " न दे इसलिए अपने मन को शांत करता हूँ और कलश यात्रा को निकल जाने देने का इंतज़ार करता हुआ अपनी अगली मंजिल " बूंदी फोर्ट " जाने के लिए निकल पड़ता हूँ :













 To Be Continued .......

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

Japanese Lesson -11

पीछे वाली पोस्ट पर जाना चाहें तो यहां क्लिक करिये और अगर शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं !!

उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों ने Basic हिरागाना Letters बनाने सीख लिए होंगे। जापानी भाषा सीखना आसान है लेकिन तब , जब आपको हिंदी आती हो ! दूसरी बात - निश्चित रूप से जापानी भाषा दुनियां की कठिन भाषाओं में मानी जाती है लेकिन असली मजा तो तभी है न जब कठिन काम किया जाय ! कठिन ही तो है , असंभव तो नहीं !! खैर हम हीरागाना की बात कर रहे हैं। हीरागाना , जापानी भाषा की मूल लिपि ( Script ) होती है , मतलब जापान के लोग अपना नाम , अपने देश का नाम और अपनी भाषा में उपलब्ध शब्दों का नाम हीरागाना लिपि ( Hiragana Script ) में लिखते हैं जबकि दूसरे देश , या उनके लोगों के नाम , या फिर जो शब्द उनकी अपनी भाषा में उपलब्ध नहीं हैं , उनके नाम वो काताकाना लिपि ( Katakana Script ) में लिखते हैं !! जैसे अगर जापान के रहने वाले "यामादा जी " अपना नाम हीरागाना ( Hiragana Script ) में लिखेंगे - やまだ और मैं अपना नाम " योगी " काताकाना ( Katakana Script ) में लिखूंगा - ヨギ.


पीछे वाली पोस्ट में आपने आ (A ) , ई (i ) , उ (u ) ,ए (e ) ,ओ (O ) तो सीखा ही , इसके साथ ही आपने का (Ka-Family ) फॅमिली , सा -फैमिली ( Sa Family)  , ता फैमिली( Ta Family)  , ना फैमिली (Na Family )  , हा फॅमिली ( Ha Family )  , मा फॅमिली ( Ma Family )  , या फैमिली ( Ya Family )  और रा फैमिली ( Ra Family)  के Letters के साथ -साथ वा ( Wa ) और वो ( Vo) , न ( N) भी लिखना सीखा है। मित्रो , ये सारे शब्द जापानी भाषा के Basic Letters कहे जाते हैं , हिरागाना लिपि में ! अब थोड़ा और आगे चलते हैं:  आ (A ) , ई(i ) , उ(u ) ,ए(e ) ,ओ (O ) जैसे स्वरों को छोड़कर बाकी सभी अक्षरों पर '' ऐसे निशान बना देने से letter बदल जाता है , ये दो कोमा जैसे होते हैं और इन्हें तेन -तेन बोलते हैं , मतलब जैसे आपके पास का (Ka ) - か है और आपने इसपर तेन -तेन लगा दिया तो ये गा (ga ) -が बन जाएगा ! समझ आया कुछ ? ऐसे ही गी - ぎ, गू ーぐ, गेーげ , गो ーご बनाकर देखिये ! नीचे पिक्चर में भी दिखाया गया है , वहां से भी देख सकते हैं।

अगला परिवार सा परिवार ( Sa Family )  के letters का है। अब यहां सा (Sa) , शी( Shi) , सू(Su) , से(Se) , सो (So) letters पर तेन -तेन लगाकर ज़ा (Za) , जी(Ji) , ज़ू (Zu), ज़े(Ze) , ज़ो(Zo) letters बनाएंगे। बन गए ? प्रैक्टिस करिये ज्यादा से ज्यादा !!

अगला नंबर ता परिवार (Ta Family)  के letters का है जिसमें ता (Ta), ची(Chi) , त्सु (Tsu), ते (Te), तो(To) आते हैं , आप इन पर तेन -तेन लगाकर दा (Da) , दी(Di) , दू (Du), दे (De),  दो( Do)  letters बना सकते हैं !! 

आज की क्लास बस इतनी ही , फिर मिलेंगे जल्दी ही , लेकिन हाँ प्रैक्टिस मत छोड़िये !!




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 If you are interested to learn it from beginning, pl.Click here and if you are willing to jump on the very last post , you may pl.click here.

A “ten-ten” mark is basically a single quotation symbol and is added to certain Japanese syllables to make new syllables that sound different. It makes voiced syllables guttural.

We can add “ten-ten” marks to the k, s, t, and h lines of the Japanese syllabary changing the syllables into their gutteral equivalents. An example would be when we place a “ten ten” mark after a voiced ka it becomes its’ gutteralized ga. In other words, ka, ki, ku, ke, ko becomes ga, gi, gu, ge, go.

か、き、く、け、こ becomes が、ぎ、ぐ、げ、ご
か + ” =  が or  ga
き + ” =  ぎ or  gi
く + ”  =  ぐ or  gu
け + ” =  げ or  ge
こ + ” =  ご or  go

In the same manner adding a “ten-ten” mark to
sa, shi, su, se or so will turn them into their gutteralized versions ie. za, zhi (ji), zu, ze, zo etc.

さ、し、す、せ、そ becomes ざ、 じ、 ず、ぜ、ぞ
さ + ” = ざ or za
し + ” = じ or zhi (ji)
す + ” = ず or zu
せ + ” = ぜ or ze
そ + ” = ぞ or zo

We can also add them to the ta line of syllables so that ta, chi, tsu, te, to becomes da, ji, zu, de, and do.

た、ち、つ、て、と becomes だ、ぢ、づ, で、ど
た + ” = だ or da
ち + ” = ぢ or ji (dzi)
つ + ” = づ or zu (dzu)
て + ” = で or de
と + ” = ど or do


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 If you have any query , pl. let me know !!

Will Remain Continue .....