शनिवार, 24 मार्च 2018

84-Pillared Cenotaph : Bundi

चौरासी खम्भों की छतरी

बूंदी की यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं !

मेनाल मंदिर,  इस यात्रा में मेरे लिए एक अद्भुत और आकस्मिक स्थान रहा। इसके बारे में न बहुत ज्यादा पहले कुछ सोचा और न ही कोई योजना बनाई , लेकिन जैसे ही इसके बारे में थोड़ी सी जानकारी मिली तो यहां आने का प्लान बना लिया। चित्तौड़गढ़ तो आना ही था , बूंदी भी तो जाना ही था और ऐसे में मेनाल मंदिर सोने पे सुहागा जैसा साबित हुआ।


ये कोटा -भीलवाड़ा हाईवे है , एकदम शानदार बना है और राजस्थान रोडवेज की बस भी आराम से मिल जाती हैं , खाली -खाली ! उत्तर प्रदेश रोडवेज की तरह मारामारी नहीं। अपना बैग जोगणिया माता वाले रास्ते पर चाय की दुकान पर छोड़ दिया था इसलिए वापस वहां आना पड़ा। सामने ही हाईवे जाता है तो बूंदी जाने की बस का इंतज़ार करने लगे , लेकिन बूंदी की बस नहीं आई बहुत देर तक,  मेनाल से करीब 20 किलोमीटर पहले बिजोलिया की ही बस पकड़ ली। बिजोलिया वही जहां से हम सुबह पार्शवनाथ जी का मंदिर देखकर गए थे। बस तो पकड़ ली , लेकिन ये हमारी गलती थी क्योंकि बिजोलिया से बूंदी जाने का रास्ता बहुत खराब है और कहीं -कहीं कच्चा भी है। और हाईवे की जिंदगी से अलग भारत के गाँवों की असली जिंदगी भी यही है , लिपे -पुते चेहरों के पीछे की कहानी , मासूम , सीधे -सादे और गरीब -लाचार चेहरे। हाईवे से बिजोलिया बस स्टैंड तक जाने के लिए करीब एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है , हालाँकि मेनाल गाँव से भी बूंदी के लिए सीधे बस मिल सकती थी लेकिन वो भी इसी रास्ते से जाती। बिजोलिया में एक पुराने से किले की चारदीवारी दिखाई पड़ी और रास्ते में एक बड़ी सी झील। बड़ी सी झील जरूर है लेकिन प्राकृतिक नहीं बल्कि बनाई हुई है और ज्यादा साफ़ -सुथरी भी नहीं लगी।

बूंदी पहुँच गए हैं और दोपहर के करीब दो बजे हैं , अभी तक कुछ खाया भी नहीं तो पहले कुछ खा लेता हूँ। बस स्टैंड से थोड़ा आगे जाकर चकाचक समोसा खाया , दही और हरी चटनी डालकर ! जबरदस्त मजा आ गया और कीमत केवल सात रुपया !! मैं जब तक समोसा निपटाता हूँ आप बूंदी की कहानी पढ़िए। बूंदी , वो बूंदी नहीं जिसे आप हर मंगलवार को हनुमान जी की पूजा के बाद बांटते हैं :) बल्कि राजस्थान के एक शहर की कहानी है।

राजस्थान के बावड़ियों का शहर कहा जाने वाला बूंदी "हाड़ोती "क्षेत्र में स्थित है। पुराने समय में बूंदी- बूंदा का नाल कहा जाता था , बूंदा मीणा वहां के कोई शासक रहे हैं और उन्हीं के नाम से बूंदा का नाल नाम आता है। इसके बाद इसे राव देवा हाड़ा ने 1342 ईस्वी में जैता मीणा से अपने कब्जे में ले लिया। और फिर मेवाड़ के सिसोदिया शासकों के बाद अंग्रेज़ों के आने से पहले तक अकबर ने यहाँ राज किया। आइये अब बूंदी के कुछ दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करने चलते हैं , और सबसे पहले "चौरासी खम्भों की छतरी " देखने चलेंगे : 

चौरासी खम्भों की छतरी ( 84-Pillared Cenotaph ) : इसके बारे में मित्रवर डॉ श्याम सुन्दर जी ने बता रखा था कि यहां जरूर जाना। यूँ सच कहूं तो डॉ श्याम बाबू ने ही बूंदी के सभी स्थानों से परिचित कराया था लेकिन वो समोसे से परिचित नहीं करा पाए :) . डॉक्टर हैं , हो सकता है तली हुई चीजों का परहेज करते हों :) और एक हम हैं कि घर से नाश्ता करके आने के बावजूद भी कॉलेज की कैंटीन में समोसा जरूर खाएंगे , पेट निकलता है तो निकलता रहे। तो जी बस स्टैंड से ऑटो लेकर चौरासी खम्भों की छतरी आ पहुंचे हैं। यहां एक लड़का बैठा है अकेला। बोला - आपने टिकट ले रखा है ? नहीं तो , कौन सा टिकट ? बूंदी के किले के अलावा जो जगहें हैं उनका टिकट लगता है। टिकट तो किले का भी लगता है लेकिन उसकी बात बाद में करेंगे। तो जी या तो आप सम्मिलित टिकट ले लो जिसमें आपको चौरासी खम्भों की छतरी , सुख महल और रानी जी की बावड़ी देखने को मिलेगी , या फिर अलग -अलग ले लो। अलग-अलग कुछ महँगी पड़ रही थी इसलिए सम्मिलित टिकट ले लिया। कितने का था , ये अब याद नहीं रहा लेकिन शायद 75 रूपये की थी। चौरासी खम्भों की छतरी को सन 1683 में बूंदी के महाराजा राव राजा अनिरुद्ध ने अपने भाई की याद में बनवाया था। यहां केंद्र में एक बड़ा और सुन्दर शिवलिंग है और कहा जाता है कि इसकी छत के नीचे 84 खम्भे हैं जिन्हें आजतक कोई भी सही तरह से नहीं गिन पाया है। मैंने कोई कोशिश नहीं की और फोटो खींचने के बाद उसी लड़के के पास आकर बैठ गया। उसकी ड्यूटी सुबह आठ से शाम साढ़े पांच बजे तक है और कुल सैलरी 6000 रूपये मिलती है। ये नौकरी भी उसे अपने पिताजी की मौत हो जाने के बाद मिली है। कभी -कभी फ़ालतू की बातें भी कर लेनी चाहिए :)

सुख महल (Sukhmahal ) : अगर आप मुझसे पूछें कि मुझे बूंदी की सबसे बेहतरीन जगह कौन सी लगी तो मैं बिना हिचकिचाहट के कहूंगा -सुखमहल ! और शायद अंग्रेजी के ब्रिटिश कवि और लेखक रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) को भी मेरी ही तरह ये जगह बहुत पसंद आई होगी इसीलिए उन्होंने यहीं इस महल में रहकर अपनी किताब "किम " को लिखने का फैसला लिया होगा। हालाँकि वो उस समय बूंदी के महाराज के गेस्ट बनकर रहे थे और मुझे कोई पूछने वाला नहीं था , वैसे अब महाराज भी जिन्दा नहीं है , नहीं तो हो सकता है मैं और महाराज एक ही टेबल पर बैठकर चाय की चुस्कियां ले रहे होते :) !

जैत सागर झील के किनारे बना सुखमहल कभी महाराज उम्मेद का ग्रीष्मकालीन आवास ( Summer Residence ) हुआ करता था लेकिन आजकल ये सिंचाई विभाग का रेस्ट हाउस है। इसमें जो कमरे बने हैं उनकी खिड़कियाँ झील की तरफ खुलती हैं और जब इन्हें खोलते हैं तब ठण्डी -ठण्डी हवा का झोंका आता है और गर्मी में भी ठण्डक का एहसास देता है। ठण्डा ठण्डा कूल कूल !! दो मंजिल के इस महल में नीचे की फ्लोर पर म्यूजियम जैसा कुछ है और ऊपर की मंजिल पर दोनों दिशाओं में कमरे बने हैं जिनमें से एक में रुडयार्ड किपलिंग रहे थे। रुडयार्ड किपलिंग का कमरा आज भी साफ़ सुथरा बना रखा है जहां उनकी किताबें को लगाया गया है ! अच्छा हाँ , सुखमहल घूमने के लिए अलग से टिकट लेने की जरुरत नहीं है , आपने जो Composite Ticket लिया था चौरासी खम्भों की छतरी पर , उसी में इसका पैसा शामिल था। लेकिन सुखमहल प्रांगण में बूंदी मेमोरियल है और उसको देखने की फीस अलग से लगती है !


इसके केंद्र में शिवलिंग स्थापित है
छत पर कलाकारी करी गई है
कहते हैं इस महल में कुछ समय पहले तक राजपरिवार के लोग रहते थे !!




चौरासी खम्भों की जो छतरी है उसके प्लॅटफॉम की दीवारें बहुत सुन्दर हैं।  उन पर भारतीय समाज में उस वक्त पशुओं के महत्व को रेखांकित किया गया है





धूप थी तो बढ़िया फोटो नहीं आ सकी
ये नेट से ली है एक फोटो







ये रुडयार्ड किपलिंग का कमरा , जहां उन्होंने अपनी किताब "किम " लिखी थी






आगे चलेंगे। ...

गुरुवार, 8 मार्च 2018

Menal Temple : Chittorgarh

मेनाल मंदिर : चित्तौड़गढ़  

फरवरी 2018 का महीना था और मुझे चित्तौडग़ढ़ जाना था , इस बीच मुझे एक दिन मिल रहा था अपने लिए। चित्तौडग़ढ़ घूमने की इच्छा नहीं थी क्योंकि यहां की गली -गली और पत्थर -पत्थर देखा हुआ है तो कुछ और घूमा जाय। तो चित्तौड़गढ़ के आसपास देखने -घूमने लायक स्थान खोजना शुरू कर दिया और जो पेज खुला उसके दूसरे नंबर पर अंग्रेजी की प्रसिद्ध ब्लॉगर और मित्र Indrani Ghoshe ji का लिंक मिला। ये मेनाल मंदिर था -मेनाल शिव मंदिर कम्प्लेक्स। नजर टिक गई और वहां जाने का मन पक्का कर लिया।

ये 16 फरवरी की रात थी जब मैं चित्तौड़गढ़ के पास चंदेरिया रेलवे स्टेशन से मेनाल मंदिर के लिए निकला था। कोटा पैसेंजर ट्रेन आती है करीब 12 बजे , उदयपुर से आती है या नीमच से , भूल गया। मेनाल मंदिर मांडलगढ़ से ज्यादा नजदीक है लेकिन रात का समय होने की वजह से नींद भी आ सकती है तो ये सम्भावना को ध्यान में रखते हुए बूंदी का टिकट ले लिया। लेकिन जो होना है वो होगा ही और हमारी नींद न मांडलगढ़ खुली , न बूंदी खुली और खुली तो कोटा से पहले एक स्टेशन पड़ता है गुड़ला , वहां जाकर आँख खुली। न इधर के रहे , न उधर के रहे। कोटा ही जाना पड़ेगा बिना टिकट। नींद भी सब काम बिगाड़ देती है। अब चाय पीकर स्टेशन से बाहर निकले और बस स्टैंड पहुंचे। यहां से बिजोलिया की बस मिल जायेगी और बिजोलिया से लगभग 18 -20 किलोमीटर दूर होगा मेनाल मंदिर। वैसे अगर सिर्फ मेनाल मंदिर ही जाना है तो बिजोलिया उतरने की कोई जरुरत नहीं है , आप कोटा से सीधे भीलवाड़ा वाली बस पकड़िए और मेनाल गाँव पर उतर जाइये। ये नेशनल हाईवे नंबर -71 है और इसी पर कोटा से 68 किलोमीटर दूर है मेनाल मंदिर। ये थोड़ी सी कम जानी - पहचानी जगह है तो कोशिश करता हूँ आपको विस्तृत और सही रूट बताने की। अगर आप दिल्ली से जा रहे हैं तो सबसे बढ़िया है शाम को सात बजे हज़रत निजामुद्दीन से जाने वाली मेवाड़ एक्सप्रेस पकड़िए और सुबह -सुबह तीन बजे मांडलगढ़ उतर जाइये। मांडलगढ़ से करीब 20 किलोमीटर दूर पड़ेगा मेनाल मंदिर , लेकिन हाँ मांडलगढ़ स्टेशन और शहर थोड़ा दूर हैं तो सुबह उजाला होने पर ही बाहर आना ठीक रहेगा , वैसे डर वाली कोई बात नहीं। अगर आपकी ट्रेन कोटा की है तो कोटा से मेनाल मंदिर तक पहुँचने का रास्ता आपको बता ही चुका हूँ।

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अब दूसरा रास्ता तब बनता है जब आप ट्रेन से उदयपुर या चित्तौड़गढ़ की तरफ से आते हैं तब भी मांडलगढ़ पहुंचिए या फिर चित्तौड़गढ़ से कोटा की बस लीजिये। यहाँ एक बात ध्यान रखियेगा , बूंदी से मत जाना , क्योंकि बूंदी ऑफ रोड हो जाता है और बहुत ज्यादा समय बेकार हो जाता है। रास्ते भी बढ़िया नहीं हैं बूंदी के।

अब आप ये भी कह सकते हैं कि जब ये रास्ते हैं तो मैं बिजोलिया क्यों गया ? बिजोलिया , NH-71, कोटा भीलवाड़ा रोड पर एक छोटा सा गाँव है , जो मेनाल से 18 किलोमीटर पहले पड़ता है। मैं जब नेट पर सर्च कर रहा था तब कहीं -कहीं बिजोलिया मंदिर भी लिखा आ रहा था , और ये भी बात निकल के आ रही थी कि बिजोलिया में भी कुछ है जिसे देखना चाहिए , इसलिए मेनाल मंदिर जाने से पहले बिजोलिया उतर गया। लेकिन ये फैसला बहुत लाभकारी नहीं रहा। बिजोलिया में सिर्फ एक जैन मंदिर है जो पार्श्वनाथ जी को समर्पित है। ये मंदिर बिजलिया गाँव से एक किलोमीटर पहले है और अगर आप कोटा से बस से जा रहे हैं तो बस वाले को बता दें कि मुझे बिजोलिया का ओवर ब्रिज खत्म होते ही उतार देना। एक किलोमीटर पैदल चलना बच जाएगा। पुल के नीचे से जो रास्ता जाता है वो बूंदी जाता है लेकिन सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अच्छी नहीं है इस रोड पर।

तो मेनाल मंदिर जाने से पहले बिजोलिया के पार्शवनाथ जी के मंदिर चलते हैं। आसपास बड़े -बड़े पत्थर टूटे पड़े हैं जिन्हें मजदूरों ने अपने हाथों से तोडा है। ज्यादातर यहां लोग यही काम करते हुए दीखते हैं , और सुबह -सुबह हाथ में टिफ़िन लटकाये अपने काम पर जाने वालों की लाइन से मिलती है। पेट की आग है ये जिसे भूख कहते हैं या अपने बच्चों के भविष्य को संवारने की छटपटाहट !! खैर चाय पीते हैं , सुबह से दो घण्टे हो गए चाय पिए ! कोटा में पी थी करीब पांच बजे और अब साढ़े सात बजे हैं। चाय तो बनती है और चाय बनाने वाले ने बना भी दी। अपना झोला यहीं छोड़ते हैं और पैदल -पैदल मंदिर चलते हैं। मंदिर का शीर्ष पास ही दिखता है लेकिन प्रवेश द्वार उधर से है , दूसरी तरफ से। थोड़ा ही चला था तो एक मोटरसाइकिल वाले मिल गए - कहाँ जाएंगे ? मंदिर ! कहाँ से आये हैं -दिल्ली से ! इतनी दूर से !! इस मंदिर के लिए ? हाँ !! वो बड़ा प्रभावित हुआ ! क्या पता ये भी सोच रहा हो -कितना बड़ा बेवकूफ है ये ! दिल्ली से यहां आया है इस मंदिर को देखने !! जैसी..... जिसकी सोच !!

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मंदिर पहुंचा तो आसपास कोई नहीं दिखा। थोड़ा आगे चला तो श्वेत वस्त्रधारी महिला -पुरुष पूजा पाठ करते हुए दिखे और वहीँ किसी चैनल का कैमरा भी लगा था , मतलब लाइव चल रहा होगा या फिर किसी और दिन दिखाया जाना होगा। मैं फोटो खींचने लगा तो एक श्वेत वस्त्रधारी आये -आओ , जल्दी आओ ! जलाभिषेक कर लो !! जी , जी ! फिर पीछे मुड़कर बोले - आ जाओ ! जी , आता हूँ ! उधर वो नजरों से गायब हुए , इधर मैं उल्टे पाँव दौड़ लिया। कारण ये था कि मैं अपवित्र था और अपवित्र होकर किसी मंदिर में जाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। अच्छा लगता नहीं है वो चाहे हिन्दू मंदिर हो या जैन मंदिर। मैं दुनियाँ के हर धर्म का सम्मान करता हूँ , बस एक को छोड़कर ! और मुझे उम्मीद है आप मुझसे उसका नाम नहीं पूछेंगे ! सभी धर्मों का सम्मान लेकिन अपने पर गर्व !!

पार्श्वनाथ जी के मंदिर दर्शन के बाद लौटे और वापस हाईवे पर पहुँच गए मेनाल जाने के लिए। आराम से बस मिल जाती है और भीड़ -भाड़ बिल्कुल नहीं। तो जी अब कुछ बात मेनाल मंदिर की भी हो जाए ? लेकिन उससे पहले मजेदार बात बताता हूँ। मैं जब मेनाल स्टॉप पर उतरा तो वहां मौजूद एक चाय की दूकान पर करीब 8 -10 लोगों से पूछा - मेनाल मंदिर किधर को है ? ऐसा तो कोई मंदिर न है इधर , हाँ जोगणिया माता का मंदिर है यहां से सात किलोमीटर दूर !! अरे वो नहीं , कोई पुराना सा मंदिर है मेनाल गाँव में !! देख लो भाई -हमें तो मालुम नहीं , मेनाल गाँव तो वो रिहा !! चल दिए तब एक नया सा लड़का मिला और उसने भलीभांति सब बता दिया। मंदिर देखने के बाद मन में आया था कि ये जरूर "किसी " के साथ इन खण्डहरों में गया होगा :)

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित मेनाल मंदिर वास्तव में कभी महानाल मंदिर हुआ करता था जिसका नाम बिगड़ते -बिगड़ते मेनाल मंदिर हो गया। भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर कभी चाहमानस शासकों के काल में शैव्य मतावलम्बियों का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। कभी तीर्थस्थलों में शामिल रहा ये मंदिर 11 वीं शताब्दी में बना था और इसे भूमिजा स्टाइल में बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसे शाकम्भरी वंश के राजा सोमेश्वर और उनकी रानी सुहावादेवी ने बनवाया था। कहते हैं कि महान राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान गर्मी के मौसम में यहां आया करते थे और उनके महल के भी कुछ अवशेष यहाँ मिलते हैं। मंदिर के सामने नंदी की बड़ी सी मूर्ति है और मंदिर के शिखर और मंडप के ऊपर एक ऐसी मूर्ति स्थापित है , जो यहाँ से पहले मैंने कहीं नहीं देखी। हालाँकि पांडेय जी बताते हैं कि पुरी सहित और भी कई मंदिरों में ये मूर्ति मिल जाती हैं। इस मूर्ति में एक शेर ने हाथी को अपने नीचे दबाया हुआ है। मुख्य मंदिर में मंडप बनाया हुआ है और अंदर गर्भ गृह है , लेकिन मंडप की हालत बहुत जर्जर हो चुकी है। इसे लकड़ी के गुटके लगाकर सपोर्ट किया गया है और छत भी ऐसे लगती है जैसे अब गिरी कि तब गिरी !!

मेनाल मंदिर कॉम्प्लेक्स में महानालेश्वर शिव मंदिर के अलावा सोलह छोटे मंदिर और हैं जिनमें से ज्यादातर खराब हालत में हैं और विडम्बना ये भी है कि कोई ख़ास ध्यान भी नहीं दे रहा इस तरफ। इस कॉम्प्लेक्स के बाहर एक खबसूरत घाटी है जिसमें मॉनसून के समय में शानदार झरना बहता है लेकिन मैं फरवरी में गया था इसलिए झरने को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। जो लोग बर्ड फोटोग्राफी में भी इंटरेस्टेड होते हैं उनके लिए ये जन्नत के जैसी है ये घाटी।

कॉम्प्लेक्स बाउंड्री के बाहर खाली जगह पड़ी है जहां पथरीली जमीन है और यहीं थोड़ा हटकर नया मेनाल मंदिर बनाया जा रहा है। शायद डर वही होगा कि कहीं पुराने मंदिर की छत गिर न जाए। जब आप थोड़ा और आगे चलते हैं तो दो पुराने से मंदिर और दीखते हैं जो झाड़ियों में नजर नहीं आते। मैं जब वहां था तो बहुत डर रहा था , डरने की वजह वो मंदिर नहीं बल्कि वहां लम्बाई में फैली हुई राख थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं शमशान में हूँ। जब पता चला कि ये शमशान नहीं बल्कि साधुओं की जलाई हुई लकड़ी की राख है , तब कहीं जाकर डर निकला।

ये जो आप फोटो में मंडप और मंदिर के शिखर पर शेर और हाथी की मूर्ति देख रहे हैं , जिसमें शेर ने हाथी को दबाया हुआ है , वो भारत के और भी प्राचीन मंदिरों में दिखाई देती है।  अगर आप पुरी गए हैं तो आपने वहां के मंदिरों में भी इस तरह की मूर्ति देखी होंगी।  यहां इन मूर्तियों में शेर हिन्दू धर्म का और हाथी बौद्ध धर्म का प्रतीक है और मूर्ति में जो शेर ने हाथी को दबाया हुआ है ये पुराने समय में हिन्दू धर्म को बेहतर और श्रेष्ठ दिखाने का तरीका था।  ये प्रसंग और नीचे दी गई तस्वीरों में जो देवी -देवताओं के नाम लिखे हुए हैं वो सब ज्ञान मुझे हमारे परम मित्र मुकेश पांडेय जी के माध्यम से मिला है।  मैं अगर अपने सर्कल की बात करूँ तो मुझे धार्मिक मामलों में ललित शर्मा जी और मुकेश पांडेय "चन्दन " जी इस क्षेत्र में विशेषज्ञ लगते हैं।  हर व्यक्ति का अपना एक विषय होता है जिसमें उन्हें महारथ हासिल होती है जैसे अगर नीरज मुसाफिर की बात करी जाए तो वो रेलवे के विशेषज्ञ कहे जा सकते हैं , अमित तिवारी जी पीक्स के विशेषज्ञ माने जाते हैं और मैं ...कुछ नहीं ! मैं तो इन मूर्धन्य लोगों की छत्रछाया में कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ !! धन्यवाद पांडेय जी

तो अब बहुत लिख लिया , फोटो प्रस्तुत करता हूँ !! 
बिजोलिया का सूर्योदय
Nescafe नहीं तो Nescoffee ही सही :)
पार्श्वनाथ मंदिर पहुँच गए


चतुर्दिक दर्शन स्तम्भ

कई लोगों की रोजी -रोटी है ये
छोटे -छोटे शहरों से ... झोला उठा के चले
जोगणिया माता मंदिर यहां से सात किलोमीटर और आगे है
कोटा से जाएंगे तो ये बोर्ड देखकर समझ लीजिये कि आप मेनाल में हैं
सजे धजे ट्रैक्टर खूब मिलते हैं उधर


मेनाल मंदिर के सामने भी एक मंदिर हैं

मेनाल मंदिर प्रवेश द्वार




ऐसे छोटे -छोटे सोलह मंदिर हैं पूरे कॉम्प्लेक्स में


ये मुख्य मेनाल मंदिर है
बर्ड फोटोग्राफी वालों के लिए शानदार जगह है








पार्वती जी
अग्नि देव

सरस्वती जी
भारसाधक यक्ष








ये नया मेनाल मंदिर बन रहा है पीछे





पेड़ के भी पेट निकल आता है:)
आगे बूंदी चलेंगे  :